मेरी -.तेरी - जग की बात

           सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
          सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुख भाक्भवेत् ।।

    कितनी सुंदर प्रार्थना है  , प्राणियों के कल्याण की कितनी सच्ची कामना है । सब सुखी हों,  सब निरोग हों, सब केवल कल्याणकारी ही देखें और किसी को कोई दुख ना हो । 
     सच में यदि ऐसी प्रार्थना और ऐसी कामना हर व्यक्ति करें तो भला रोग , शोक और कष्ट भला किस को सता सकते हैं , क्योंकि प्रार्थना में बहुत बड़ी शक्ति है । आशीर्वाद में और शुभकामनाओं में वह ताकत है जो किसी का भी वर्तमान और भविष्य सुधार सकती है  ।
  इसके विपरीत दूसरों को सताना , दुख देना  ,कष्ट देना बहुत ही बुरा है क्योंकि इस तरह शोषित व्यक्ति के हृदय से जो बद्दुआ निकलती है वह घातक होती है ।
      कबीर दास जी ने भी कहा है ....
  निर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय ।
  मरे जीव के स्वास से लौह भस्म हो जाए।।
       मरे हुए जीव की हाल से बनी हुई धौंकनी लोहार काम में लेते हैं ।  उसकी हवा से आग तेज होती जाती है और लोहे को भी तपा कर गलाने की शक्ति रखती है ।  जब मरे हुए जीव की सांस से लोहा भस्म हो सकता है तो जीवित व्यक्ति को सताने पर उसके हृदय से निकला हुआ श्राप भला क्यों ना मारक होगा , घातक होगा ।
     हमें सदैव ऐसे प्रयास करने चाहिए कि हम दूसरों की शुभकामनाएं ले सकें उनका आशीष पा सकें।

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