मेरी - तेरी - जग की बात ।
कल शाम को घूमने के लिए पार्क में गई थी । जीवंतता से भरपूर था पार्क । कहीं बुजुर्ग बैठे गप मार रहे थे , कहीं बच्चे खेल रहे थे । कुछ पहलवान दौड़ लगा रहे थे मैं भी वहां उस बेंच पर बैठ गई जिसके पास में झूले लगे थे और चहकते हुए बच्चे झूला झूल रहे थे या आसपास खेल रहे थे ।
तभी कान में कुछ शब्द पड़े ब्रेकअप .....पैच अप... इमोशनली हर्ट ....मेरे कान खड़े हुए और आवाज आने वाली दिशा की ओर मैंने देखा । तीन छोटी बच्चियां .. उम्र होगी कोई 10 या 11 साल की और बातें कर रही थीं अपनी किसी सहेली की, जिसका किसी से ब्रेकअप हो गया था और वह डिप्रेशन में थी । उनकी बातें सुनकर और चेहरे के हाव भाव देख कर मैं स्तंभित रह गई । इतने छोटे बच्चे , गुड़ियों से खेलने की उम्र है यह। फूलों की रंग बिरंगी पंखुड़ियां समेटने की और तितलियों के पीछे भागने की ....मगर इनकी बातें... यह कहाँ पहुंचा दिया है हमने अपने बच्चों की सोच को ????
क्या परिवार की गलती है यह ? या समाज की ? या साथियों से सुन सीखते हैं या फिर घर में बड़ों के साथ बैठकर ऐसे टीवी सीरियल्स देखते हैं जिनसे इन का कोमल मन और मस्तिष्क कार्बाइड में पकाए हुए फलों की तरह समय से पहले ही परिपक्व हो रहा है ? प्रौढ़ हो रहा है ।
नहीं ..नहीं .रुकना होगा हमें और सोचना होगा कि कहीं यह फूहड़ परिपक्वता हमारे इन कोमल बच्चों के कोमल मन को विकृत ना कर दे । करना क्या होगा इसके लिए ??? निगाह रखनी होगी ना केवल इन बच्चों पर बल्कि अपने आप पर भी क्योंकि आखिरकार सीखते तो वे हमसे ही हैं।
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